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डर के गलत आकलन से पैदा होता है फोबिया

९ नवम्बर २०१०

ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने चिंता और डर के रहस्य को खोलने की कोशिश में दिलचस्प बातें पता लगाई हैं. इनके मुताबिक खतरों पर दिमाग की प्रतिक्रिया उसकी दूरी, दिशा और खतरे के अनुमान पर निर्भर होती है.

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कैम्ब्रिज में अनुभूति और दिमाग यूनिट के शोधकर्ताओं ने 20 वोलंटियर्स में दिमाग की गतिविधियों की जांच के लिए फंक्शनल रेजोनेंस इमेजिंग विधि का इस्तेमाल किया, जब वे अपने पांव के पास रखे और उनकी करीब जाते टैरंट्यूला मकड़ों को देख रहे थे.

जांच से पता चला कि दिमाग के भय नेटवर्क के विभिन्न हिस्से खतरे पर अलग अलग प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार हैं और चिकित्सकों को क्लीनिकल फोबिया से ग्रस्त मरीजों के रोग का पता लगाने और उनका इलाज करने में मददगार हो सकते हैं.

शोध टीम का नेतृत्व करने वाले डीन मोब्स का कहना है, "हमने दिखाया है कि दिमाग में सिर्फ एक ढांचा नहीं होता, बल्कि भय नेटवर्क के अलग अलग अंग होते हैं और वे डर पर होने वाली प्रतिक्रिया को दिखाने के लिए मिलकर काम करते हैं."

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प्रयोग में हुआ टैरंट्यूला मकड़ों का इस्तेमालतस्वीर: M. Siliwal

मोब्स की टीम ने वोलंटियर्स के दिमाग में होने वाली हरकतों का तीन स्तर पर आकलन किया. पहला तब, जब खतरनाक दिखने वाला टैरंट्यूला मकड़ा पांव के पास रखे एक बक्से में था, और तब जब मकड़ा नजदीक आया या दूर गया. अंतिम बार दिमागी हरकत को तब मापा गया, जब मकड़ा अलग अलग दिशाओं में गया.

मोब्स कहते हैं, "जब दूर से मकड़ा आपकी ओर बढ़ता है तो आप चिंता क्षेत्र से घबराहट की ओर बदलाव देखते हैं." उनका कहना है कि जब मकड़ा दूर जाने के बदले नजदीक आया, तो दिमाग के प्रतिक्रिया केंद्र में अधिक हरकत हुई, इस बात से अलग कि वह कहां था.

मोब्स ने बताया कि वोलंटियर्स दरअसल मकड़े का वीडियो देख रहे थे और सोच रहे थे कि वह उनके पांव के पास है, क्योंकि मकड़े से हर बार एक काम कराना संभव नहीं होता.

वैज्ञानिकों ने वोलंटियर्स से पहले ही पूछ लिया था कि टैरंट्यूला मकड़े से उन्हें कितना डर लगता है और बाद में पाया कि जिन लोगों ने सोचा था कि वे बहुत डर जाएंगे, उन्होंने मकड़े के आकार के बारे में गलत सोचा था.

वैज्ञानिकों का कहना है कि संभवतः यही संभावना की भूल लोगों में फोबिया के विकास की कुंजी होती है. कुछ चीजों, लोगों, जानवरों और परिस्थितियों से बेतुका, गहन और लगातार भय फोबिया कहलाता है. फोब्स का कहना है कि बड़े डर की संभावना दिमाग में खतरे के आकार को बढ़ा देती है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए कुमार

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