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विदेशी नर्सों के साथ भेदभाव

२३ जून २०१४

विदेश में नौकरी करने का सपना बहुत लोग देखते हैं. पर कई बार विदेश पहुंच कर ही पता चलता है कि सपने और हकीकत में कितना फर्क है. विदेशों से जर्मनी आ रही नर्सों का यही हाल है.

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60 Jahre koreanische Gastarbeiter in Deutschland
तस्वीर: Kim Sperling

23 साल की मारिया बहुत उम्मीदों के साथ जर्मनी पहुंची. मारिया स्पेन के मैड्रिड की रहने वाली हैं. बतौर नर्स ट्रेनिंग करने के बाद भी अपने देश में उन्हें नौकरी नहीं मिल रही थी. आखिरकार बर्लिन आ कर उनका सपना पूरा हुआ. अब कुछ वक्त एक निजी क्लीनिक में काम कर लेने के बाद वह नौकरी बदलना चाहती हैं. लेकिन उनके कॉन्ट्रैक्ट में कोई ऐसी शर्त है जिसके चलते वह दो साल से पहले नौकरी नहीं छोड़ सकती. अगर उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें 6,600 यूरो यानि करीब साढ़े पांच लाख रुपये चुकाने होंगे. ऐसा क्यों है, वह नहीं जानती. मारिया इस बात से बेहद परेशान हैं, "कॉन्ट्रैक्ट में कुछ साफ साफ नहीं लिखा है, चीजों को ठीक से समझाया नहीं गया है. फिलहाल मैं बेहतर नौकरी नहीं तलाश सकती." मारिया अपनी पहचान नहीं बताना चाहती, इसलिए हमने उनका नाम बदल दिया है.

कंपनियों ने फंसाया

वह अकेली नहीं हैं जिनके साथ ऐसी धोखाधड़ी हो रही है. जर्मनी की ट्रेड यूनियन वैर्डी के अध्यक्ष काले कुंकेल के पास कम से कम सौ ऐसे मामले आए हैं, जहां स्पेन, ग्रीस और पुर्तगाल से आए लोगों ने शिकायत की है कि वे जर्मनी आ कर फंस गए हैं. कई नर्सों के कॉन्ट्रैक्ट में तो नौकरी छोड़ने पर 10,000 यूरो का जुर्मानादेने की बात कही गयी है. डॉयचे वेले से बातचीत में कुंकेल ने बताया, "इससे वे सुनिश्चित करते हैं कि कर्मचारी कंपनी से बंध जाएं. अधिकतर मामलों में ठीक तरह से नहीं लिखा गया होता कि कितने पैसे चुकाने होंगे."

अपनी आमदनी में से इन लोगों को रहने खाने का खर्च तो निकालना ही होता है, साथ में जर्मन भाषा सीखने का कोर्स करना भी अनिवार्य है. हालांकि इस कोर्स के लिए सरकार पैसे देती है, लेकिन भाषा सीखने के लिए जितने घंटे वे क्लास में रहते हैं, उतने उनकी नौकरी में कम हो जाते हैं, यानि सीधे सीधे आय पर असर पड़ता है. कुंकेल कहते हैं, "ये लोग जब जर्मनी आ कर काम करना शुरू करते हैं, तो भले ही इन्हें बेहतर नौकरी मिले, लेकिन अपने देश के मुकाबले बेहद कम तनख्वाह मिलती है."

बच्चों में गठिया

काले कुंकेल का कहना है कि भले ही जर्मनी आने से पहले लोगों को अपना कॉन्ट्रैक्ट देख कर लगता है कि वे खूब पैसा कमाने वाले हैं, लेकिन यहां आ कर ही समझ आता है कि खर्चे भी बहुत हैं और जर्मनी के लोगों को उनकी तुलना में कितना ज्यादा पैसा मिल रहा है. जहां सरकारी नर्सों को प्रति घंटा 30 से 40 यूरो तक मिलते हैं, वहीं प्राइवेट नर्सों को मात्र दस यूरो ही दिए जाते हैं. इसके अलावा जिस दिन वे बीमार पड़ जाएं, उस दिन का वेतन भी नहीं मिलता. स्पेन की मारिया बताती हैं कि वह काम तो बारह घंटे करती हैं, लेकिन पैसा उन्हें छह से सात घंटे का ही मिलता है.

'पॉलिटिकल स्कैंडल'

यह हालात तब हैं जब जर्मनी में नर्सों की भारी कमी है. फिलहाल 30 हजार जगह खाली हैं. जानकार बताते हैं कि इस दशक के अंत तक सवा दो लाख नर्सों की जरूरत पड़ सकती है. यही वजह है कि इस कमी को पूरा करने के लिए जर्मनी की दक्षिण यूरोपीय देशों पर नजर है. पिछले कुछ सालों में जर्मनी ने स्पेन, ग्रीस, इटली और पुर्तगाल में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने के लिए निवेश भी किया है. कुंकेल का कहना है कि इन देशों से आने वाले कुशल कामगारों को अच्छा वेतन और अच्छी सुविधाएं दिलाना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए. वह इसे 'पॉलिटिकल स्कैंडल' का नाम देते हैं.

इंटरनेट पर ऐसे कई फोरम मौजूद हैं जहां विदेशी नर्सें अपने अनुभव बांटती हैं. इन्हीं में से एक पर किसी नर्स ने लिखा कि पैसा बचाने के लिए अस्पताल ने मरीजों पर कम डायपर इस्तेमाल करने को कहा, यहां तक कि कई जगह लोगों के जख्मों पर भी ठीक तरह से मरहम पट्टी नहीं की जा रही थी. मारिया बताती है कि उनकी एक सहेली ने इस तरह काम ना करने का फैसला किया और 6,600 यूरो चुका कर अपने देश वापस चली गयी. लेकिन मारिया ऐसा नहीं करना चाहती, "माहौल तो अच्छा नहीं है, पर फिर भी मैं खुश हूं." मारिया अपना कॉन्ट्रैक्ट पूरा करेंगी और कम से कम दो साल और जर्मनी में काम करेंगी. शायद उसके बाद उन्हें बेहतर जगह काम करने का मौका मिले.

रिपोर्ट: श्टेफानी होएपनर/आईबी

संपादन: महेश झा