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जयपुर में तिनका तिनका तिहाड़

२४ जनवरी २०१४

कैद तो कोई मन से होता है, तन से नहीं, जयपुर में जब महिला कैदियों की कविताएं सुनाई गईं, तो यह बात साबित हो गई. दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद कैदियों की रचनाओं ने उनकी कल्पनाओं के नए आयाम खोले.

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तस्वीर: DW/J. Singh

"दिल से दिल को मिलाया तुमने,

सांसों से सांसों का रिश्ता बनाया तुमने,

आंखों से दुनिया दिखाई तुमने,

अहसास से पापा से मिलाया तुमने"

मां के लिए श्रद्धा और आभार के यह शब्द हैं दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी नई दिल्ली की तिहाड़ जेल में सजा काट रही सीमा रघुवंशी के. सीमा अपने मंगेतर के साथ शादी से कुछ समय पहले किए गए जुर्म के लिए पिछले चार साल से जेल में हैं. उनके ख्यालों को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है वर्तिका नंदा और विमला मेहरा ने. नंदा कवयित्री और मीडिया शिक्षक हैं तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर हैं जबकि मेहरा तिहाड़ जेल की महानिदेशक हैं.

सीमा की कविता को जयपुर साहित्य सम्मलेन में वर्तिका नंदा ने पढ़ कर सुनाया. अवसर था "मन की जेल" का सत्र, जिसमें कैदियों के साथ काम कर रही साहित्यिक शख्सियतों ने भाग लिया.

सीखचों में कैद औरतों की किताब

वर्तिका नंदा और विमला मेहरा ने तिहाड़ जेल में सजा काट रही महिला कैदियों की कविताओं के संग्रह का संपादन किया है. संग्रह को नाम दिया गया, 'तिनका तिनका तिहाड़'. यह अनोखी पहल है क्योंकि इसमें कविताओं के साथ तिहाड़ जेल के महिला कारागार नंबर 6 की दुर्लभ तस्वीरें भी हैं. ये तस्वीरें महिला कैदियों ने खुद खींची हैं.

इस किताब का मकसद पाठकों को उस जगह से परिचित कराना है जिसका नाम तिहाड़ है. महिला कैदियों को कुछ समय के लिए कैमरे उपलब्ध कराए गए थे ताकि वे अपनी मर्जी से अपनी कल्पनाओं को उड़ान देते हुए उन्हें तस्वीरों में ढाल सकें. और फिर तस्वीरों के पीछे चिपकाए गए पन्नों पर छापी गई, उसे खींचने वाली की कविता. कविताओं के माध्यम से महिला कैदियों की भावनाओं को जानने व समझने का मौका मिलता है.

Podiumsdiskussion Frauen in indischen Gefängnissen
जयपुर साहित्य सम्मलेन की तस्वीरतस्वीर: DW/J. Singh

'तिनका तिनका तिहाड़' कैदी लेखिकाओं का देश का पहला कविता संग्रह है. यह उसी तरह पूरा सफेद स्याह है जैसी है इन कैदियों की जिंदगियां. किताब के शब्द न ‍सिर्फ सोचने को विवश करते हैं बल्कि पुस्तक के भीतर झांकने को भी बरबस ही मजबूर कर देते हैं. सींखचों के पीछे कैद इन औरतों की किताब उनके मन के दस्तावेज को पढ़ने समझने को आकर्षित करती है.

पुस्तक के साथ गाना भी

वर्तिका नंदा कहती हैं, "हर औरत कभी न कभी एक ऐसे मुकाम से गुजरती है जहां उसे अपनी चुप्पी और जुबान के बीच एक को चुनना पड़ता है. जहां अदालतें महज सरकती हैं, सत्ताएं सोचा करती हैं, संस्थाएं दावे करती हैं और मन थरथराया करता है." वे कहती हैं कि तिहाड़ के भीतर सिसकती आहों को न सिर्फ महिला कैदियों ने महसूस किया है बल्कि उनकी अभिव्यक्तियों को बाहर की चमकती धूप दिखाने का साहस भी दिखाया है.

'तिनका-तिनका तिहाड़' पुस्तक का एक रोचक पहलू यह भी है कि किताब के साथ ही इस नाम से गाने का ऑडियो भी उपलब्ध है. वर्तिका नंदा बताती हैं कि किताब छपने के बाद उन्हें लगा कि पुरुष कैदियों के साथ भी कुछ किया जाये तो उन्होंने विमला मेहरा के साथ मिल कर कविताओं पर आधारित एक गीत लिख डाला. और इस गीत को स्वर देने के लिए चुने गए तिहाड़ जेल के ऐसे पुरुष कैदी जिनकी आवाजें अच्छी थीं. यह गाना अब तिहाड़ जेल का परिचय गान बन चुका है.

जेलों को बदलने की जरूरत

राजस्थान की पहली महिला जेल अधीक्षक प्रीता भार्गव ने भी सम्मलेन में शिरकत की. लगभग तीस सालों तक जेलर का काम संभालने वाली प्रीता भार्गव कहती हैं कि जेलों को कारावास के रूप में कम और सुधार गृह के रूप में ज्यादा देखा जाना जरूरी है. वे कहती हैं कि जेल प्रशासन की जिम्मेदारी है कि कैदी अपनी सजा काट कर समाज में नए इंसान के रूप में वापस लौट सके.

भार्गव का कहना है कि सिर्फ पांच से 10 प्रतिशत कैदी ऐसे होते हैं जो सुधरते नहीं हैं अन्यथा मानसिकता बदला जाना असम्भव नहीं. वे कहती हैं कि मुजरिम भी समाज का हिस्सा हैं और इसी समाज के कारण वे जुर्म करने पर मजबूर होते हैं. उनके विचार में कैदियों की मानसिकता को बदलने के लिए समाज के साथ साथ जेलों को भी बदलना होगा. वे देश की सभी जेलों में कैदियों के व्यापक सुधार कार्यक्रम चलाये जाने की आवश्यकता पर जोर देती हैं.

कैदियों के प्रति समाज की मानसिकता में परिवर्तन की मांग करते हुए भार्गव कहती हैं कि सजा काट कर वापस आए कैदी के साथ सम्मानजनक बर्ताव करना होगा ताकि नए मुजरिम पैदा न हों. सम्मेलन में मौजूद लेखिका मार्गरेट मसकारेनहास कहती हैं कि यदि क्षमताओं के अनुसार कैदियों को प्रशिक्षण और मार्गदर्शन उपलब्ध कराया जाए तो कमाल के परिणाम आ सकते है. वे बताती हैं कि उन्होंने गोवा की जेल में लेखन, नृत्य संगीत और चित्रकला का प्रशिक्षण दिलवाया और कैदियों की कृतियों का व्यावसायिक उपयोग भी किया. इससे होने वाली आमदनी का आधा हिस्सा कलाकारों के बैंक खातों में जमा करवाया जाता था.

रिपोर्टः जसविंदर सिंह, जयपुर

संपादनः अनवर जे अशरफ

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