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चावेज का फैसला आज

७ अक्टूबर २०१२

वेनेजुएला के राष्ट्रपति हूगो चावेज अब तक की अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना कर रहे हैं. रविवार को आम चुनावों में उनके जवान प्रतिद्वंद्वी मतदाताओं की निराशा का फायदा उठा रहे हैं.

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तस्वीर: dapd

हेनरीक काप्रीलेस चावेज के लिए खतरा बनते दिख रहे हैं. काप्रीलेस एक मध्यमार्गी राज्य गवर्नर हैं और आक्रामक चुनाव प्रचार के जरिए उन्होंने चावेज की वोट बैंक को काफी हद तक अपने नाम कर लिया है.

चावेज ने तेल निर्यात से कमाए गए पैसों के जरिए दुनिया भर में दोस्त बना तो लिए हैं. साथ ही उन्होंने अमेरिका के प्रति अपने विरोध का भी भारी प्रचार किया है. लेकिन उनकी अपनी राजधानी काराकस में विरोधी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने शनिवार से उनके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया. लेकिन चावेज के कुछ समर्थकों ने रविवार को चुनाव से पहले बिगुल बजाकर आसपास के मतदाताओं से चावेज के लिए वोट करने की अपील की. चावेज ने मतदाताओं से इस बीच कहा कि रविवार के चुनावों के नतीजों को स्वीकार करने के लिए सबको भावनात्मक तौर पर तैयार होना होगा. 58 साल के चावेज कैंसर के मरीज हैं लेकिन पिछले सालों के चुनाव प्रचारों के मुकाबले इस साल वे कुछ फीके रहे. खास तौर से 40 साल के उनके प्रतिद्वंद्वी काप्रीलेस के मुकाबले.

चुनाव विश्लेषक हालांकि अब भी चावेज की विजय को पक्का मान रहे हैं. लेकिन काप्रीलेस चावेज को कड़ी चुनौती दे रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक काराकस में मौजूद नहीं हैं लेकिन दक्षिण अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र की कुछ टीमें चुनाव पर नजर रखे हुए हैं. साथ ही, स्थानीय टीमें पर्यवेक्षण कर रही हैं और सबसे इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम पर पूरा विश्वास है.

Venezuela Präsidentschaftswahlen 2012
तस्वीर: Reuters

इस बीच चावेज ने विरोधी पार्टियों पर आरोप लगाया है कि वे हिंसा की साजिश बना रहे हैं. कुछ विरोधी पार्टियों को लग रहा है कि अगर चावेज हार जाते हैं तो शायद वे अपने पद से हटने से मना कर दें. अगर काप्रीलेस जीत जाते हैं तो दक्षिण अमेरिका में अमेरिका का विरोध करने वाली एक बड़ी आवाज खत्म हो जाएगी. विश्लेषकों का मानना है कि 30 लाख बैरल तेल बनाने वाले वेनेजुएला में कई अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियां आएंगी और देश का आर्थिक ढांचा पूरी तरह बदल जाएगा.

काप्रीलेस ब्राजील की तरह निजी कंपनियों और ठोस सामाजिक कार्यक्रमों के साथ देश में विकास लाना चाहते हैं. लेकिन उनके सामने भी कई चुनौतियां हैं. उन्हें देश में महंगाई, मुद्रा स्फीति और तेल कंपनियां चला रहे चावेज के समर्थकों से जूझना होगा.

एमजी/एजेए (रॉयटर्स, एपी)

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