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गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है

५ फ़रवरी २०११

रेल पटरियां भारत की नब्ज हैं. उन पर जब रेलें दौड़ती हैं तो भारत दौड़ता है. काली और लाल रंग की इन सर्पीली मशीनों का हर डिब्बा भारत को जोड़ता है. भारत को देखने का जरिया रेल यात्रा से बेहतर नहीं है. विदेशी भी फिदा.

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तस्वीर: picture alliance/Dinodia Photo

भारत की हेरिटेज ट्रेनें विदेशी पर्यटकों को खूब लुभाती हैं. इसलिए भारत का पर्यटन मंत्रालय इनके सहारे विदेशी सैलानी बाजार का आकर्षित करके फायदा उठाने पर काम कर रहा है. इसके लिए सहारा लिया जा रहा है भाप के पुराने इंजनों का जो भारत के इतिहास को वर्तमान से जोड़ते हैं. दिल्ली में डिविजनल रेलवे मैनेजर अश्वनी लोहानी कहते हैं, "स्टीम हेरिटेज टूरिज्म में काफी संभावनाएं हैं. स्टीम इंजन के पेट में जब आग धधकती है और उससे जब ट्रेन दौड़ती है तो सैलानियों को काफी मजा आता है. उसकी खास तरह की आवाज, इतिहास की याद दिलाती सीटी, कांपता शरीर और खुला डिजाइन...सब कुछ इतना रूमानी है कि सैलानी उसमें खो जाते हैं."

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तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur Huber

भारतीय राष्ट्रीय रेल म्यूजियम के निदेशक रहे लोहानी ने ही ऐतिहासिक फेयरी क्वीन यात्रा की शुरुआत की थी. यह ट्रेन 1855 में बने लोकोमोटिव इंजन से दौड़ती है और इसका नाम सबसे पुराने लोकोमोटिव इंजन के तौर पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है.

कम नहीं रेल दीवाने

रेलों के दीवाने सिर्फ लोहानी ही नहीं हैं. सोशल नेटवर्किंग साइटों से लेकर पत्रिकाओं और ब्लॉग तक में रेल यात्रा के अनूठे किस्से, अद्भुत तस्वीरें और अजीब जगहों की जानकारियां मुहैया हैं. रेल टूरिज्म की दीवानगी का अंदाजा पुणे के एक म्यूजियम में होता है जहां ट्रेनों के छोटे छोटे 400 मॉडल रखे हैं. इस म्यूजियम में हर महीने लगभग दो हजार लोग सैर करते हैं. म्यूजियम को चलाने वाले रवि जोशी कहते हैं, "लोग ट्रेनों के मॉडल खरीदते हैं और उन्हें अपने ड्रॉइंग रूमों में सजाते हैं. लेकिन ये काफी महंगे हैं. इनकी कीमत चार से 12 हजार रुपये के बीच है. इसलिए सभी इन्हें नहीं खरीद सकते लेकिन इन्हें सराहने वाले कम नहीं हैं."

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

फायदे का सौदा

भारतीय रेलों में बढ़ती विदेशी सैलानियों की दीवानगी का फायदा टूअर ऑपरेटर भी उठाना चाहते हैं. ट्रैवल एजेंसी रीयल इंडिया जर्नी चलाने वाले अशोक शर्मा कहते हैं, "एक वक्त था जब विदेशी सैलानी पैलेस ऑन व्हील जैसी लग्जरी ट्रेनों से ही सफर करना पसंद करते थे. अब स्टीम इंजन के चाहने वालों की कमी नहीं. हर हफ्ते फोटोग्राफरों और सैलानियों का हुजूम इन ट्रेनों से यात्रा करने के लिए पहुंचता है."

लेकिन जानकार मानते हैं कि इस क्षेत्र में जितनी संभावनाएं हैं उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इंजनों की साज संभाल न होने की वजह से दो दशकों में भाप के इंजनों में काफी कमी आई है. लोहानी कहते हैं, "ब्रिटेन जैसे बहुत सारे देशों में लोकोमोटिव इंजनों को संभालकर रखा गया है. इसका मकसद विरासत को संभालने के साथ साथ टूरिज्म भी है. भारत में अब जितने इंजन बचे हैं उनसे कहीं ज्यादा को संभालकर रखा जा सकता था."

चमकीला भविष्य

1999 में बनाई गई भारतीय स्टीम रेलवे सोसाइटी ने भाप के इंजनों से विरासत रेल यात्रा के लिए 53 रूटों को चुना है. इनमें दार्जीलिंग, नीलगिरी और शिमला जैसे बेहद खूबसूरत रूट भी शामिल हैं. पिछले साल ही भारत के एकमात्र लोकोमोटिव शेड को एक पर्यटन स्थल बना दिया गया. इसमें नौ भाप इंजन हैं जो अभी भी चालू हालत में हैं. यहां आने वाले सैलानियों ने काम करने वालों का उत्साह बढ़ाया है इसलिए इस क्षेत्र का भविष्य चमकीला नजर आने लगा है.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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