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क्लस्टर बमों पर पाबंदी, संधि पर 100 देशों के दस्तख़त

४ दिसम्बर २००८

नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में क़रीब 100 देशों ने क्लस्टर बमों पर प्रतिबंध लगाए जाने के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. हालांकि इनमें अमेरिका, चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और इसरायल जैसे अहम देश शामिल नहीं हैं.

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2006 में लेबनान के एक गांव में इसरायल द्वारा गिए गए क्लस्टर बम

बारूदी संरुगों के अलावा क्लस्टर बम ख़ासकर आम जनता के लिए ख़तरनाक होते हैं. उन्हें हवा में सक्रिय किया जा सकता है या फिर ज़मीन में कई वर्षों तक दबे रहने के बावजूद वे किसी भी समय फट सकते हैं. लेकिन इस समझौते को कितनी सफलता मिल पाएगी, यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि इन बमों को बनाने वाले सबसे बड़े देश अमेरिका, चीन, रूस, इसरायल, भारत और पाकिस्तान ने संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है.

फिर भी मानवाधिकार संस्था हैंडिकैप इंटरनैशनल की ऊली आंकेन ने इसका स्वागत किया है. उनका कहना है कि आखिरकार केवल मानवता के बिनाह पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ऐसा किया है. हथियारों की एक पूरी किस्म पर प्रतिबंध लगाया गया है. क्लस्टर बमों को विमानों से ज़मीन पर फेंका जा सकता है या फिर ज़मीन से हवा में फ़ायर किया जा सकता है.

एक समय में एक साथ एक हज़ार बम फेंके जा सकते हैं. चूंकि इन बमों को किसी स्पष्ट निशाने पर नहीं फेंका जा सकता आम नागरिकों के लिए ये अत्यंत खतरनाक हो जाते हैं. साथ ही जो बम फटते नहीं हैं, वे ज़मीन पर कई वर्षों तक पड़े रहने के बाद भी सक्रिय होते हैं.

अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस संस्था के डॉमिनिक लियो कहते हैं,'जब 1000 बम इस्तमाल में लाए जाते हैं जो उनमें से 40 प्रतिशत में विस्फोट नहीं होता. यानि 400 बम ज़मीन पर पड़े रहते हैं जो फटते नहीं. जब किसी संकट या युद्ध के दौरान घर से भागे लोग वापस लौटते हैं और अपने घरों का निर्माण करते हैं तो भी बमों के फटने का खतरा बना रहता है. केवल उन पर एक कड़म रखने से बम फट सकता है.'

हैंडिकैप संस्था के अनुसार अब तक इन परिस्थितियों में मरने वालों की संख्या 13 हज़ार से ज़्यादा है. विशेषज्ञ प्रभावितों की संख्या एक लाख बताते हैं. जिन देशों ने ऑस्लो संधि पर हस्ताक्षर किए हैं वे इन बमों से प्रभावित हुए लोगों की देख-रेख के लिए भी बाध्य हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से दुनिया में ऐसे 25 संघर्षों के दौरान इन बमों का इस्तेमाल किया गया है.

अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, लाओस, चेचनिया, वियेतनाम, लेबनान या फिर हाल ही में जॉर्जिया. आशा जताई जा रही है कि संधि के अस्तित्व में आ जाने से उन देशों पर दबाव बनाया जा सकता है, जिन्होंने अभी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. क्लस्टर बम निर्यात करने वाले देश जर्मनी ने भी कहा है कि वह भी इस समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहता है.