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ऑस्लो से इस बार सही संकेत

फ्लोरियान वाइगांड/एमजे१० अक्टूबर २०१४

एक पख्तून टीनएजर सहिष्णुता और संवाद की मिसाल बन गई है. डॉयचे वेले के फ्लोरियान वाइगांड का कहना है कि मलाला युसूफजई उग्रवाद का विरोध करने वाले मुसलमानों के लिए भी मिसाल है.

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Nobelpreis-Medaille
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मलाला ने कहा था, "मैं उस तालिबान से नफरत नहीं करती, जिसने मेरे ऊपर गोली चलाई. यदि मेरे हाथ में बंदूक भी होती और वह मेरे सामने होता, मैं गोली नहीं चलाती. यह वह दया है जिसे मैंने पैगंबर मोहम्मद, ईसा मसीह और गौतम बुद्ध से सीखा है."एक टीनएजर के सहमेल और संवाद के ताकतवर शब्द जो उसने 2013 में संयुक्त राष्ट्र के युवा सम्मेलन में बोले थे. वह उस साल भी नामांकित थी लेकिन पुरस्कार पाने के लिए उसे एक साल का इंतजार करना पड़ा.

ऑस्लो में नोबेल पुरस्कार कमेटी ने एक अच्छा फैसला सुनाया है. मलाला ने अपने शब्द खुद लिखे हों या वे किसी पीआर एजेंट के हों, 17 साल की मलाला जो बोलती है उसे जीती भी है. तब भी जब वह हमलावर की गोली से गंभीर रूप से घायल थी और लंबे इलाज के बाद फिर ठीक हुई, वह धमकी के आगे नहीं झुकी, लेकिन उसमें बदले की भावना भी नहीं दिखी. वह आदर्श शांतिदूत है, जिसकी अलफ्रेड नोबेल ने शायद कल्पना की हो. इसके साथ कमिटी ने पिछले सालों के विवादास्पद फैसले के बाद अपनी प्रतिष्ठा फिर से बहाल कर ली है, जिसमें पहले बराक ओबामा की तारीफ के कसीदे पढ़े गए, फिर यूरोपीय संघ या रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध लगाने वाले संगठन को सीरिया में तैनाती के लिए पुरस्कार दिए गए.

यह फैसला एक और मायने में महत्वपूर्ण है. मलाला पख्तून है और पाकिस्तान की स्वात घाटी की रहने वाली है, जहां तालिबान सक्रिय है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के मन में उसके इलाके के लंबी दाढ़ी वाले चरमपंथियों की तस्वीर गहरे बैठ गई है. मलाला उसका विख्यात उल्टा रूप है. इसके अलावा वह अपने धर्म की भी सेवा कर रही है. मलाला इस्लाम के शांति संदेश को सामने कर रही है और दूसरे धर्म के लोगों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रही है.

साथ ही ऑस्लो इलाके की सरकारों को भी एक अहम संदेश दे रहा है. जबकि पाकिस्तान और भारत एक बार फिर विवादित कश्मीर की सीमा पर झगड़ें में व्यस्त हैं जूरी ने पाकिस्तान की मलाला के अलावा भारत के कैलाश सत्यार्थी को प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया है. कैलाश सत्यार्थी बच्चों के शोषण के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं और खुद को महात्मा गांधी की विरासत के रूप में देखते हैं. नोबेल पुरस्कार समिति ने साफ संदेश दिया है कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद के झगड़े का अंत होना चाहिए. वहां शिक्षा और बच्चों की सुरक्षा जैसी दूसरी समस्याएं हैं जिनका मिलजुलकर और शांतिपूर्ण तरीके से सामना किया जाना चाहिए.