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इतिहास में आजः 16 मार्च

१५ मार्च २०१४

जहरीली गैस को किस तरह केमिकल हथियार बनाया जा सकता है, इसका पता आज ही के दिन 1988 में चला. जब इराक ने अपने ही हजारों कुर्द नागरिकों को रासायनिक हथियार से मार दिया.

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तस्वीर: picture alliance/ROPI

हालाबजा शहर राजधानी बगदाद से कोई 250 किलोमीटर दूर है. साल 1988 में 16 मार्च को इराकी वायु सेना के 20 विमानों ने 11 बजे दिन में केमिकल हथियारों का जखीरा इसी शहर के आम लोगों पर छोड़ दिया. जानकारों का दावा है कि इनमें मस्टर्ड गैस, सारीन, टाबून और एक्सवी के अलावा साइनाइड का भी इस्तेमाल किया गया.

इस शहर में कुर्द बहुल लोग रहते हैं, जो स्वायत्तता की मांग कर रहे थे और उनसे निपटने के लिए इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने केमिकल अली की मदद से जहरीली गैसों का इस्तेमाल किया. चश्मदीदों का कहना है कि न सिर्फ शहर, बल्कि इससे बाहर निकलने के सभी रास्तों पर भी रासायनिक हथियार चलाए गए, "इनमें से 50 मीटर ऊंचा धुआं उठा, जो पहले सफेद, फिर काला और ऊपर पीला नजर आया."

यह घटना ईरान इराक युद्ध के आखिरी दिनों की है. घायल लोगों को ईरानी राजधानी तेहरान के अस्पताल में दाखिल कराया गया. ज्यादातर मस्टर्ड गैस के शिकार थे. जिनकी जान बच पाई, उन्हें रासायनिक हमले की वजह से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी या उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी. चमड़ी का बुरा हाल था. कुछ रिपोर्टों के मुताबिक हादसे में 75 फीसदी महिलाएं और बच्चे शिकार बने.

मरने वालों के बारे में पक्का आंकड़ा नहीं है. लेकिन बताया जाता है कि उनकी संख्या 3200 से 5000 के बीच रही होगी. इससे दोगुने लोग जख्मी हुए. सद्दाम हुसैन के चचेरे भाई अली हसन अल माजिद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर "केमिकल अली" के रूप में जाने जाते थे और इस हमले में उनका हाथ बताया जाता है.

हादसे में किसी तरह जान बचाने वाले एक शख्स ने बरसों बाद याद ताजा की, "अचानक बमों जैसा विस्फोट हुआ और लोग गैस गैस चिल्लाते हुए भागे. मैं अपनी कार में बैठा और उसकी सारी खिड़कियां बंद करके भागा. रास्ते में कुछ लोग हरे रंग की उलटियां कर रहे थे और कुछ जोर जोर से हंस रहे थे. फिर हंसते हंसते बेहोश हो कर गिर रहे थे. मेरी कार पता नहीं कितने ही मासूम लोगों के शरीर को कुचलते हुए गुजरी होगी. बाद में मैं भी बेहोश हो गया. होश आया, तो मुझे सेब की तरह की खुशबू आई, फिर अंडे की तरह आने लगी."