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आम हो रहा है चुनाव में कानून तोड़ना

१ मई २०१४

भारतीय चुनाव पूरे विश्व में होने वाला सबसे बड़ा चुनाव है. व्यापक होने के कारण कुछ गड़बड़ी स्वाभाविक है, लेकिन शासन करने वाली या शासन चाहने वाली पार्टियों या उसके नेताओं पर धांधली के आरोप लगें, यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं.

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तस्वीर: UNI

लोकसभा के लिए नौ चरणों और एक माह से भी अधिक समय में हो रहे मतदान में 81 करोड़ से ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं और इसके लिए पूरे देश में 9 लाख 30 हजार मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं. एक ओर जहां भारत का निर्वाचन आयोग स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की भरसक कोशिश करता है वहीं राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की हरचंद कोशिश किसी भी तरह से जीत हासिल करने की होती है. आयोग और उम्मीदवारों के बीच इस रस्साकशी में कभी पलड़ा आयोग का तो कभी उम्मीदवारों का भारी रहता है. आयोग राज्यों की प्रशासनिक मशीनरी और पुलिस एवं अर्ध-सैनिक बलों की चुस्ती और कर्तव्यपालन में मुस्तैदी पर निर्भर रहता है क्योंकि उसके पास अपने निर्देशों का पालन कराने के लिए कोई स्वतंत्र व्यवस्था नहीं है. इसलिए अनेक बार आयोग के निर्देशों के बावजूद स्थानीय प्रशासन और पुलिस आदि की चूक या मिलीभगत के कारण चुनाव प्रक्रिया के साथ छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं हो पाती.

पश्चिम बंगाल में 30 अप्रैल, 2014 को हुआ मतदान इसका ताजातरीन उदाहरण है. कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सभी विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ व्यापक पैमाने पर मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने और फर्जी वोट डालने के आरोप लगाए हैं. पिछले चुनावों में ऐसे ही आरोप तत्कालीन सत्तारूढ़ वाममोर्चे के खिलाफ लगा करते थे. यानी केवल सरकार में बैठी पार्टी बदली है, चुनावों में धांधली करने की प्रवृत्ति नहीं. चुनाव के दौरान सीपीएम के दो उम्मीदवारों के खिलाफ पुलिस ने समन जारी करके उन्हें तत्काल थाने में हाजिर होने का आदेश दिया. अधिकारियों को यह अच्छी तरह पता था कि ये उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं. लेकिन उन्हें परेशान करने की नीयत से चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने वाला यह कदम उठाया गया. पश्चिम बंगाल अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहां ऐसी घटनाएं हो रही हैं. सभी राज्यों में कमोबेश इस तरह की घटनाएं होती हैं, जिनसे भारतीय लोकतंत्र की जड़ों के कमजोर होने का पता चलता है.

Mamata Banerjee indische Politikerin
फर्जी वोटिंग के आरोपतस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images

बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को निर्वाचन आयोग ने बहुत गंभीरता से लिया है और उसके निर्देश पर उनके खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई हैं. उन्होंने मतदान करने के बाद अपनी पार्टी का चुनावचिह्न कमल वहां उपस्थित लोगों और टीवी कैमरों को दिखाया और एक चुनावी भाषण भी दे डाला. मतदान की प्रक्रिया के समय मतदान केंद्र के बाहर ऐसा आचरण सर्वथा वर्जित है. लोगों को चिंता यह है कि जब देश का संभावित प्रधानमंत्री ही इस तरह की हरकत करेगा तो अन्य लोगों से क्या अपेक्षा की जा सकती है. लेकिन कांग्रेस ने इस पर जरूरत से ज्यादा तीखी प्रतिक्रिया जताई है और वाराणसी एवं वडोदरा, दोनों स्थानों से मोदी की उम्मीदवारी रद्द किए जाने की मांग कर डाली है. इस मांग का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि मोदी की गलती इतनी बड़ी नहीं कि उनके लिए ऐसी सजा तजवीज की जाये.

लेकिन मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी से खबरें आ रही हैं कि वहां आम आदमी पार्टी के चुनाव कार्यालयों और कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं और उन्हें चुनाव प्रचार करने से रोका जा रहा है. यह चुनाव प्रक्रिया को पटरी से उतारने की खुल्लमखुल्ला कोशिश है. इसी तरह अनेक स्थानों पर कांग्रेस और बीजपी समेत विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों के वाहनों से भारी मात्र में शराब और धन बरामद हो रहा है. इस एक कड़वा सच है कि गरीब मतदाता को लुभाने के लिए जहां सभी पार्टियां मोहक चुनावी वादे करती हैं, वहीं उनके बीच पैसा और शराब भी बांटती हैं. जीतने की कोशिश में हर किस्म के दांव चले जाते हैं. अगर वोट खरीदे जा सकें तो उन्हें खरीदा जाता है, वरना लोगों को वोट देने से रोका जाता है और उनकी जगह उम्मीदवार के लोग फर्जी वोट डाल आते हैं. मतदान केन्द्रों पर कब्जा भी इसी प्रक्रिया की एक कड़ी है.

लोकतंत्र में मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है और चुनाव के दौरान यह और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है. चुनाव में धांधली को टीवी चैनल प्रत्यक्ष दिखा सकते हैं और अखबार रिपोर्ट कर सकते हैं. लेकिन यह भी एक दूसरी कड़वी सच्चाई है कि मीडिया का भी चुनावी लाभ के लिए दुरुपयोग अब आम हो चला है. पेड न्यूज इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. राजनीतिक दल और उम्मीदवार अखबारों और टीवी चैनलों के साथ अनुबंध कर लेते हैं कि एक बड़ी धनराशि के भुगतान के बदले में वे उनके बारे में सकारात्मक रिपोर्ट दिखाएंगे या छापेंगे. इसके फलस्वरूप टीवी चैनलों के दर्शक और अखबारों के पाठक जिसे संवाददाता की निष्पक्ष रिपोर्ट समझते हैं, वह असलियत में खबर के भेस में विज्ञापन होती है. यह एक ऐसी चुनाव धांधली है जिसके प्रति भारतीय प्रेस परिषद ने जागरूकता तो दिखाई है लेकिन जिसे रोकने के लिए अभी कुछ खास नहीं किया जा सका है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

संपादन: महेश झा