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आधुनिक गुलाम या आर्थिक मदद

१२ मार्च २०१३

जर्मनी में अस्थायी नौकरियों की संख्या बढ़ रही है. ऐसी गैरसरकारी एजेंसियां खुल गई हैं जो दूसरी कंपनियों को कुछ समय के लिए कामगारों की सप्लाई करती है कि वे खुद नई भर्ती किए बिना अतिरिक्त ऑर्डर पूरा कर सकें.

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तस्वीर: dapd

जर्मनी में 90,000 कर्मचारी अस्थायी रोजगार एजेंसियों में रजिस्टर हैं. इन एजेंसियों को अपने कर्मचारियों को उन कंपनियों को लोन पर देने की आधिकारिक अनुमति है, जिन्हें अस्थायी रूप से कर्मचारियों की जरूरत है. इस नीति को लागू करने वाले नेताओं ने सोचा था कि इससे जर्मन कंपनियां व्यापार के उतार चढ़ाव से बेहतर ढंग से निबट पाएंगी और बेरोजगार लोगों को रोजगार मिल पाएगा.

अनचाहा विकास

लेकिन व्यवहार में बहुत सी कंपनियों को इस नियम के लागू होने से कर्मचारियों पर खर्च में भारी बचत करने की संभावना दिख गई. अब वे कर्मचारियों की स्थायी भर्ती करने के बदले एजेंसियों से किफायती अस्थायी कर्मचारियों ले सकते थे. परिवहन और व्यापार कंपनियों ने अपने स्थायी कर्मचारियों की तादाद घटा दी और उनके स्थान अस्थायी कर्मचारियों की भर्ती करने लगे. इस बीच दिवालिया हो गए जर्मन सुपर बाजार चेन श्लेकर ने तो स्थायी कर्मचारियों को निकालना शुरू कर दिया और उन्हें 30 प्रतिशत कम तनख्वाह पर फिर से नई नौकरी देने की कोशिश की.

इस बीच इस तरह की कोशिशों पर कानूनन प्रतिबंध लगा दिया गया है. लेकिन नई भर्तियों में अस्थायी कर्मचारियों का इस्तेमाल जारी है. सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अस्थायी रोजगारों का बड़ा हिस्सा ऐसे इलाकों में है जहां विश्व क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं होती. इस तरह की नौकरियां रोजगार एजेंसियों के कारोबार का 34 प्रतिशत हिस्सा हैं. दफ्तरों की सफाई, अलमारियों में सामान रखने या मालगोदामों में माल ढुलाई का काम अस्थायी कर्मचारियों के जिम्मे होता है. इसलिए लोगों को कोई सम्मान नहीं दिया जाता.

अपमानजनक परिस्थितियां

बहुत से अस्थायी कर्मचारी डर से गुमनामी की शर्त पर जो कुछ बताते हैं, वह आधुनिक गुलामी जैसा लगता है. कुछ को ट्रायल की अवधि में तनख्वाह नहीं दी गई तो अक्सर काम शुरू करने से पहले कोई कॉन्ट्रैक्ट ही नहीं बनाया गया. कुछ के मामले में घंटे की तनख्वाह नहीं बताई गई तो कुछ काम देने वाले यह मानकर चल रहे थे कि कर्मचारी वीकएंड और छुट्टियों में भी काम करेंगे.

पेशे से फोरमैन राइनर एक साल से एक छोटी रोजगार एजेंसी के लिए काम कर रहे हैं. उन्हें एक निर्माण कंपनी ने हायर किया. यह कठिन काम था. उसे दिन में 14-14 घंटे काम करना पड़ता था, अक्सर उचित सुरक्षा के बिना. इस काम के लिए उसे घंटे में पांच से साढ़े छह यूरो का मेहनताना मिलता था. उसे एक ऐसे सर्विस कॉन्ट्रैक्ट के तहत हायर किया गया था जिसने उसके नियोक्ता को कानूनी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया था. राइनर कहता है, "मेरा आत्मविश्वास पूरी तरह खत्म हो गया था." अपनी मासिक आय से वह परिवार चलाने की हालत में नहीं था. जर्मनी राइनर जैसे कम वेतन वाले सेक्टर में काम करने वाले श्रमिक परिवारों का खर्च चलाने के लिए 50 करोड़ यूरो की सबसिडी देता है.

पेटर एक मालगोदाम में काम करते हैं. वह भी संतुष्ट नहीं हैं. ओवरटाइम से उन्हें अतिरिक्त मेहनताना मिलना चाहिए और एक एकाउंट पर ओवरटाइम के घंटे, लेकिन 47 वर्षीय पेटर को अब तक मिला कुछ नहीं, "यदि मैं इसकी मांग करूंगा तो मुझे निकाल देंगे." पेटर कहते हैं कि वह ऐसे लोगों को जानते हैं, जिन्हें विरोध करने पर काम से निकाल दिया गया.

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ट्रेड यूनियनों ने ऐसे कई मामले दर्ज किए हैं. धातु उद्योग के ट्रेड यूनियन आईजी मेटल द्वारा दर्ज ये मामले दिखाते हैं कि छोटी एजेंसियां बहुत कम खर्च पर कारोबार चलाती हैं. अस्थायी कर्मचारियों से अक्सर अपने अधिकारों को छोड़ देने को कहा जाता है. जब वे बीमार होने पर घर पर रहने के अधिकार का इस्तेमाल करते हैं तो उनकी तनख्वाह काट ली जाती है.

मौका है अस्थायी काम

आन्ने रोसनर खुद एक एजेंसी चलाती हैं और उन उद्यमों पर नाराजगी दिखाती हैं जो नियमों का पालन नहीं करते और अक्सर सुर्खियों की वजह बनते हैं. उनका कहना है कि एजेंसियों को अक्सर बुरी बातें सुननी पड़ती हैं जबकि यह उचित नहीं है, क्योंकि ज्यादातर सकारात्मक उदाहरण मिलते हैं. रोसनर का कहना है कि दो तिहाई अस्थायी कर्मचारी बिना किसी समस्या के प्रशिक्षित रोजगारों और अच्छे दफ्तरों में कर्मचारी, मैकेनिक या इंजीनियर का काम करते हैं.

सचमुच अस्थायी कर्मचारी बहुत सी गंभीर एजेंसियों में सामाजिक सुरक्षा को पसंद करती हैं. उन्हें स्थाई कॉन्ट्रैक्ट का लाभ मिलता है जो श्रम बाजार में अब शायद ही उपलब्ध है. इसके अलावा क्रिसमस में बोनस, 30 दिन की वार्षिक छुट्टी और छंटनी से सुरक्षा की सुविधा भी मिलती है. पेशे से कार मैकेनिक रोलांड जाइबरलिष कहते हैं, "मुझे स्लिप डिस्क होने के बाद काम रोकना पड़ा. मुझे अस्थायी कामगार के रूप में दूसरा मौका मिला." अब वे अपनी एजेंसी में फोर्क लिफ्ट ड्राइवर का काम करते हैं.

ऑफिस क्लर्क साशा आइजेनहुट अस्थायी नौकरी में नुकसान से ज्यादा फायदा देखते हैं. "आप अलग अलग दफ्तरों में ट्रायल कर सकते हैं और पता कर सकते हैं कि आप क्या करना पसंद करते हैं." उनका कहना है कि अक्सर इस बात की संभावना होती है कि आपको अस्थायी रूप से हायर करने वाली कंपनी आपको पर्मानेंट कर देगी. कोलोन के आर्थिक शोध संस्थान का कहना है कि 25 प्रतिशत कर्मचारियों को अस्थाई रोजगार के जरिए अपना स्थाई काम मिला है.

मानक बनाने की कोशिश

रोजगार एजेंसियां इस बीच दो पेशेवर संगठनों के साथ स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही हैं. कानून सख्त किए जा रहे हैं, आचार संहिता बनाई जा रही है और केंद्रीय रोजगार दफ्तर इन एजेंसियों पर नियंत्रण कस रहा है. स्थायी और अस्थायी कर्माचारियों के समान देने की मांग भी जोर पकड़ रही है. बिना ट्रेनिंग वाली नौकरियों में कम से कम 8.19 यूरो की प्रति घंटे मेहनताना दिया जा रहा है.

ओमर इलमाज की पिछले चार साल से अपनी छोटी अस्थायी रोजगार एजेंसी है. वे नई शर्तों का स्वागत करते हैं. उनका मानना है कि इनसे सेक्टर में मेहनताने की डंपिंग को रोकने में मदद मिलेगी. वे कहते हैं, "मैं न्यूनतम वेतन के पक्ष में हूं. मैं अपने कर्मचारियों को अपने पास रखना चाहता हूं." इलमाज इस बात की पुष्टि करते हैं कि केंद्रीय रोजगार दफ्तर ने सचमुच सख्ती कर दी है. "वे हर कर्मचारी की फाइल का मुआयना करते हैं कि उन्हें सही वेतन दिया जा रहा है या नहीं, वे सालाना छुट्टियां ले रहे हैं या नहीं." इलमाज के अपने सभी सौ कर्मचारियों के लिए दो-दो हजार रुपये बैंक में जमा करने पड़े ताकि वह मुश्किल समय में भी उन्हें वेतन दे सकें.

इलमाज ने अपनी एजेंसी को पेशेवर संगठन बीएपी के साथ जोड़ा है. भविष्य में अस्थायी कर्मचारियों के लिए उनकी सलाह यह है कि वे इस बात पर ध्यान दें कि उनकी एजेंसी पेशवर संगठन के सात जुड़ी है और वह बहुत छोटी नहीं है. वे इस बात को मानते हैं कि बहुत सी कंपनियां ऐसी हैं जिन पर भरोसा नहीं किया जा सकता, खास कर गैर प्रशिक्षित लोगों को काम देने वाली. उनका कहना है कि अस्थायी कर्मचारियों के लिए मुश्किलों की स्थिति ट्रेड यूनियन अच्छे पार्टनर हैं. इसके अलावा उद्योग ने खुद भी एक मध्यस्थ बना रखा है जो काम देने वालों और कामगारों के बीच विवादों का निबटारा करता है.

रिपोर्ट: वोल्फगांग डिक/एमजे

संपादन: ए जमाल

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