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आजादी, मगर किस कीमत पर

१६ दिसम्बर २०११

16 दिसंबर बांग्लादेश के लिए एक अहम दिन है. 1971 में इस दिन बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ लेकिन युद्ध अपराधियों को सजा और पाकिस्तान से माफी अब भी हाथ में आते दिखाई नहीं दे रहे.

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तस्वीर: Public domain

1947 में पाकिस्तान भारत से अलग हुआ. ब्रिटिश शासन भारत में मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस के नेताओं को धर्म के आधार पर विभाजित करने में कामयाब हो चुकी थी और बंगाल इस बंटवारे की बलि चढ़ा. 1946 में ब्रिटिश सरकार ने भारत के विभाजन के लिए एक खास आयोग का गठन किया. उस वक्त बंगाल एक ऐसा राज्य था जहां मुसलमानों की तादाद हिंदुओं से ज्यादा थी. कैबिनेट मिशन ने बंगाल के विभाजन के लिए स्वीकृति दे दी, लेकिन भारतीय कांग्रेस पार्टी को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था. मुस्लिम लीग के नेताओं ने कांग्रेस के विरोध के खिलाफ आवाज उठाई और इस आवाज ने बंगाल को दंगों में धकेल दिया. हजारों लोगों की जाने गईं और लाखों लोग बेघर हुए. दंगों का कहर देश भर में फैल गया और भारत दो देशों में बंट गया, हिंदुस्तान और पाकिस्तान.

हिंसा की पृष्टभूमि पर बना पाकिस्तान भारत के पूर्व और पश्चिम में मुस्लिम जनता के प्रतिनिधित्व के लिए बना था, लेकिन भाषा और संस्कृति ने फिर दरारें खड़ी कर दीं. पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली नेता अपने लिए एक अलग देश की मांग करने लगे. 26 मार्च 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान पर चढ़ाई की. मकसद था, देश के पूर्वी हिस्से में उन बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को चुप कराना जो आजादी की मांग कर रहे थे. लेकिन मामला यहीं तक सीमित नहीं रहा. पूर्वी पाकिस्तान के विरोधी लड़ाकों का संगठन मुक्ति बाहिनी पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिकों के खिलाफ लड़ रहा था. वहीं, पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिकों ने अपने ही देश के पूर्वी हिस्से में आम जनता के बीच कहर मचा दी, लाखों घर उजाड़े, सैकड़ों महिलाओं का बलात्कार किया और लोगों की जाने लीं. आखिरकार, भारतीय सैनिकों की मदद से पूर्वी पाकिस्तान को छुड़ाया जा सका और 16 दिसंबर 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिकों ने हथियार डाल दिए.

Bangladesch völkerrechtlich unabhängig von Pakistan
16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से अलग हुआ बांग्लादेशतस्वीर: AP

अब 40 साल बाद, बांग्लादेश के नेता पाकिस्तान से इस जनसंहार के लिए औपचारिक माफी की मांग की है. हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्री दीपू मोनी ने बांग्लादेश को पाकिस्तान के राजदूत से यह मांग की. बांग्लादेश के मुताबिक 1971 में पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने स्थानीय सहायकों के साथ मिलकर 30 लाख लोगों की जाने लीं. लगभग दो लाख महिलाओं का बलात्कार किया गया और लाखों लोगों को बेघर किया. बांग्लादेश की मांग है कि पाकिस्तान दोनों देशों के बीच इन मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करे और जनसंहार के लिए क्षमा मांगे. मोनी ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को लड़ाई का मुआवजा देना होगा. मोनी के मुताबिक अगर ऐसा जल्दी होता है, तो दोनों देशों के बीच संबंध तेजी से सामान्य हो जाएंगे.

इस बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 1971 युद्ध अपराधों के लिए खास अदालत का गठन किया है. देश के सबसे बड़े इस्लामी पार्टी, जमात ए इस्लामी के पांच वरिष्ठ नेताओं पर भी युद्ध अपराधों का आरोप है हालांकि लड़ाई के दौरान पार्टी ने खुल कर पाकिस्तान से अलग होने की मांग की थी. ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम को सराहा है लेकिन इसमें बदलाव की मांग भी की है ताकि कार्रवाई बिना किसी भेदभाव के आगे बढ़े. जमात ए इस्लामी पार्टी के नेता दिलावर हुसैन सैयदी भी युद्ध अपराधों के लिए अदालत के सामने पेश होंगे. उनके वकील जॉन कैमेग का कहना है कि आरोपियों को कानूनी सलाह और स्थानीय वकीलों की मदद से परे रखा गया. कई आरोपियों को परेशान किया गया और सरकारी वकीलों ने कार्रवाई खत्म होने के पहले ही आरोपियों के लिए सजा की बात कही है.

रिपोर्टः एपी,एएफपी/एमजी

संपादनः ए जमाल

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