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आख़िर क्या है मजबूरी ग़ैरक़ानूनी गर्भपात की

प्रिया एसेलबॉर्न (संपादनः ए जमाल)११ दिसम्बर २००९

एक मां के लिए उसके बच्चे से बढ़ कर कुछ नहीं होता. लेकिन आख़िर क्यों एक औरत अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही ख़त्म कर देना चाहती है और सभ्य कहे जाने वाले समाज में भी क्यों जारी है ग़ैरक़ानूनी गर्भपात.

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कुरीति या जागरूकता की कमीतस्वीर: AP

क्या होता है, जब कोई महिला अपने अजन्मे बच्चे को ख़त्म कर देने का फ़ैसला करती है. हताशा, निराशा और अवसाद के थपेड़ों से गुज़रती हुई वह महिला शायद अपनी ज़िन्दगी का यह सबसे मुश्किल क़दम उठाती है. लेकिन आख़िर इसकी नौबत ही क्यों आती है. अगर विकासशील देशों में देखा जाए तो कई वजह हैं.. ग़रीबी, पहले से कई बच्चे होना या शादी से पहले मां बनने का संकट.

Abtreibungsgegner in Spanien
तस्वीर: AP

ऐसे मौक़ों पर महिलाएं बच्चे के पैदा होने से पहले ही उसे ख़त्म कर देती हैं. भारत जैसे कई देशों में यह काम छिप छिपा कर भी किया जाता है, जो औरतों की जान ख़तरे में डालता है और हर साल दुनिया भर में क़रीब 70,000 औरतें बच्चा पैदा न करने की वजह से जान गंवा देती हैं.

भारतीय समाज में लड़के की लालसा ने भी गर्भपात को बढ़ावा दिया है. दुनिया के कई देशों में इसे क़ानूनी दर्जा दे दिया गया है और कोई भी औरत अगर मां नहीं बनना चाहती है तो निश्चित समय के अंदर वह अपना पेट गिरा सकती है.

लेकिन फिर भी हर साल क़रीब दो करोड़ केस ऐसे आते हैं, जब ग़ैर क़ानूनी ढंग से छिप छिपा कर यह काम किया जाता है और सिर्फ़ भारत में ही लगभग 60 लाख औरतें यह रास्ता चुनती हैं.

डॉक्टरों का कहना है कि इसमें जो तरीक़े अपनाए जाते हैं, वे इतना जानलेवा होते हैं कि मां की जान जोखिम में पड़ जाती है. अफ्रीका के देशों में यह समस्या बुरी तरह मुंह बाए खड़ी है. केन्या के एक डॉक्टर बताते हैं कि न तो सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है और न ही सही इक्वेप्मेंट इस्तेमाल किए जाते हैं. कई बार तो उनके पास औरतें ऐसी हालत में आती हैं, जब उनके अंग अबार्शन के प्रयास की वजह से बुरी तरह घायल हो चुके होते हैं.

एक दिन मेरे पास एक महिला आई. वह किसी ऐसे आदमी के पास गई थी, जिसे इलाज के बारे में कुछ पता नहीं. महिला के अंगों में छेद हो गए और उसकी आंतें भी बुरी तरह चोटिल हो गईं. कई बार तो बच्चा गिराने के दौरान औरत का इतना ख़ून बह जाता है कि उसकी मौत हो जाती है.- केन्या के डॉक्टर का बयान

हालांकि केन्या जैसे देशों में ज़्यादातर ईसाई रहते हैं, जहां अबार्शन को धार्मिक लिहाज़ से भी पाप माना जाता है. यहां तो इस पर बहस भी मुश्किल है और अजन्मे बच्चे से छुटकारा पाने वाली औरतों के लिए सज़ा तय है. महिलाएं सिर्फ़ तब अपने पेट में पल रहे जीवन को समाप्त कर सकती हैं, जब वे साबित कर पाएं कि उनके साथ बलात्कार हुआ या इससे उनकी जान को ख़तरा है. लेकिन लोक लाज की वजह से औरतें मारे शर्म के ऐसे मौक़ों पर सामने आती ही नहीं.

जब अबार्शन को ग़ैरक़ानूनी माना जाता है, तब हमारे लोग छिप छिपा कर यह करते हैं. जो ज़ाहिर है औरतों की सेहत से खिलवाड़ है. जब महिलाओं को समस्या होती है तो इसकी वजह हमारा क़ानून है. इस वजह से हर रोज़ महिलाओं की जान जाती है.- महिला कार्यकर्ता सेओदी व्हाइट

कई बार ऐसी रिपोर्टें आती हैं कि बेहद क्रूर तरीक़े से महिलाओं के अजन्मे बच्चे को ख़त्म किया जाता है. भारत में 1970 के दशक में क़ानून बना, जिसमें कुछ मामलों में औरतों को अजन्मे बच्चे को ख़त्म करने का अधिकार दिया गया. लेकिन यह काम प्रसव के सातवें हफ़्ते तक कर लिया जाना चाहिए. वह इसके लिए डॉक्टरों के पास जा सकती हैं.

लेकिन सामाजिक ताने बाने की कुरीतियों और जागरूकता की कमी से वह इसका फ़ायदा नहीं उठा पातीं. गांव में रहने वाली महिलाओं को इस बात की भी पता देर से चलता है कि कब उनके शरीर में एक और शरीर पलने लगा.

शिक्षा की कमी, ग़रीबी या जागरूकता की कमी भी औरतों को ऐसा क़दम उठाने पर मजबूर करती हैं. लेकिन भारत के समाज में आज भी लड़कों को लड़कियों से बेहतर माना जाता है. लड़कियां मां बाप पर भार समझी जाती हैं और उनके पैदा होते ही मां बाप उनकी शादी ब्याह और परवरिश को लेकर माथा पीटने लगते हैं. इस वजह से भी कई बच्चे पैदा होने से पहले ही दम तोड़ देते हैं.

पाकिस्तान की लेडी डॉक्टर शीरीं भुट्टो कहती हैं कि स्कूलों में यौन संबंधों की शिक्षा नहीं दी जाती. अब तक महिलाएं इस देश में ज़्यादातर बच्चे घर में पैदा करती हैं. करीब 65 प्रतिशत जन्म समाज के अंदर ही होते हैं. तो उन महिलाओं तक पहुंचना या उन्हें परिवार नियोजन के बारे में बताने का कोई फ़ायदा ही नहीं होता क्योंकि तब तक वह गर्भवती हो चुकी होती हैं. वैसे भी परिवार नियोजन के लिए ज़रूरी दवाइयां और दूसरी चीज़ों तक सबके पास पहुंच नहीं है.