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अर्मीनिया जनसंहार पर फ्रांस से नाराज तुर्की

२२ दिसम्बर २०११

तुर्की के विरोध के बावजूद फ्रांस की संसद ने अर्मीनिया में जनसंहार को नकारने वालों को सजा दिलाने के लिए खास विधेयक पारित किया है. फ्रांस में तुर्की के राजदूत ने शुक्रवार को फ्रांस छोड़ने का एलान किया.

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विश्व युद्ध के दौरान करोड़ो लोगों की जाने गईंतस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library

1915 में हुए अर्मीनियाई जनसंहार को नकारने के खिलाफ फ्रांसीसी संसद के निचले सदन ने प्रस्ताव पारित कर दिए हैं. अब यह मामला फ्रांस की सीनेट में जा रहा है. 2001 में फ्रांस ने औपचारिक तौर पर 1915 में हुए हादसे को जनसंहार करार दिया था लेकिन इसे जनसंहार न मानने वाले व्यक्तियों को सजा देनी की कोई बात नहीं कही गई थी. नए बिल के मुताबिक जनसंहार नकारने वाले किसी भी व्यक्ति को एक साल जेल में बिताना होगा और 45,000 यूरो का जुर्माना भरना पड़ेगा.

तुर्की की धमकी

तुर्की ने पहले विश्व युद्ध में अर्मीनियाई मूल के लोगों की मौत को "जनसंहार" के रूप में स्वीकार करने से मना किया और नए कानून के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है. राष्ट्रीय टेलीविजन चैनल टीआरटी के मुताबिक, तुर्की अपने राजदूत को फ्रांस से वापस बुला रहा है. फ्रांस की सीनेट ने अगर इस विधेयक को पारित कर दिया तो तुर्की के साथ उसके संबंधों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है.

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फ्रांसीसी नैशनल असेंब्ली में पारित हुआ विधेयकतस्वीर: AP

हालांकि फ्रांस की न्यू सेंटर पार्टी के जां क्रिस्टोफ लागार्द का कहना है कि फ्रांस में पारित कानूनों पर अंकारा में तुर्की सरकार कुछ नहीं कह सकती. फ्रांसीसी संसद के निचले सदन, नेशनल एसेंबली के सामने गुरुवार को कई तुर्कों ने विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन किए. उधर, विधेयक तैयार करने वाली वालेरी बोये का कहना है कि उनका विधेयक किसी एक देश को निशाना नहीं बना रहा है और बिल यूरोपीय मूल्यों पर आधारित है, जिनमें जनसंहार को कानूनी तौर पर जुर्म माना गया है.

फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सार्कोजी भी बिल की तरफदारी कर रहे हैं. तुर्की ने फ्रांस को धमकी दी है कि अगर विधेयक कानून बन जाता है तो वह फ्रांस से वित्तीय और राजनीतिक संबंध तोड़ देगा. फ्रांस के लिए ऐसा होना परेशानी साबित कर सकता है क्योंकि अफगानिस्तान में नाटो की कार्रवाई, सीरिया और मध्य पूर्व के मुद्दों पर तुर्की पश्चिमी देशों का अहम साझेदार है.

जनसंहार पर विवाद

Türkei USA Armenien Demonstration in Istanbul gegen Völkermordsresolution
इस्तान्बुल में कानून के खिलाफ प्रदर्शनतस्वीर: AP

पहले विश्व युद्ध के दौरान 1915 और 1916 में ऑटोमन शासन (तुर्की) ने अर्मीनियाई मूल के लाखों लोगों को पूर्वी अंताल्या से सीरिया के रेगिस्तान भेज दिया था. इनमें से हजारों लोग भुखमरी का शिकार हुए और कई लोगों को मार दिया गया. अर्मीनिया का कहना है कि इस दौरान 10 से 15 लाख लोग मारे गए जब कि तुर्की यह संख्या बहुत कम बताता है.

इस हादसे की जांच कर रहे अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के बीच में "जनसंहार" शब्द को लेकर अब तक सहमति नहीं बन पाई है. संयुक्त राष्ट्र संधि के मुताबिक, जनसंहार तब माना जाएगा, जब किसी एक धार्मिक, राष्ट्रीय या जाती मूल के लोगों को मारने की योजना बनाई जाए और उस पर अमल हो. तुर्की अफसरों ने अर्मीनियाई लोगों को मारने की बात तो मानी है, लेकिन उनका कहना है कि ईसाई धर्म के अर्मीनियाई लोगों को नियोजित रूप से खत्म करने का उनका इरादा नहीं था. उनका कहना है कि युद्ध के दौरान सैकड़ों तुर्क भी मारे गए.

तुर्की ने अब फ्रांस को खुद अपने इतिहास में भी झांकने को कहा है. 1945 में अल्जीरिया में हत्याकांड और 1994 में रवांडा जनसंहार में फ्रांस की भूमिका अब भी साफ नहीं है. पिछले हफ्ते तुर्की के प्रधानमंत्री रज्जब तैयब एर्दवान ने कहा, "जो लोग जनसंहार देखना चाहते हैं, उन्हें पीछे मुड़कर अपना गंदा और खून भरा इतिहास देखना चाहिए. तुर्की हर राजनयिक तरीके से इस अन्याय भरी कोशिशों का सामना करेगा." राष्ट्रपति अब्दुल्लाह गुल ने भी कहा है कि इस कानून से फ्रांस अपने आप को एक ऐसा देश साबित कर रहा है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं देता और जो निष्पक्ष शोध को बढ़ावा नहीं देता.

रिपोर्टः डीपीए, एपी/एमजी

संपादनः ए जमाल

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